अंतस के गोठ


*अंतस के गोठ*

देखत साठ 

चेत लमरगे 

वो बेरा, वो घड़ी म 

तोला सुरता हे का ? 

जब आवन जावन संग म...


धीर गम्भीर 

गुरतुर-गुरतुर 

तोर गोठ-बात

आज ल हे 

मोला सुरता 

तोर मुस्काई म

मुस्कावँवँ

देखवँ तोला कनेखी 

तोला पता हे का? 

कब समा गये अंतस म...


सबके समझ 

जाथच हाल 

फेर काबर

नइ समझच 

मोर अंतस के गोठ 

ककरो सो कभू पुछे हच का ? 

ए पगला के हाल-चाल...


मन म 

हलाकानी 

दे के गए रहे 

कतका दिन 

बितगे 

मिलन के आस 

धराये रहे 

तैं जानथच का ? 

मोर दरद के तहीं दवा...


कइसे कहवँ 

कहाय नही 

बिना कहे रहाय नही 

जान के 

झन बन अंजान

सुन तो रे संगी

हिरदे म 

पखरा रख लेथच का ? 

जेन मया ओगरय नही...


*रचनाकार:असकरन दास जोगी*

मो. 9340031332

www.antaskegoth.blogspot.com

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