मेरी प्रेयसी

*मेरी प्रेयसी*

निहार ही रहा था पथ नयनों से,मन में था आवेश !
मृगनयनी चन्द्र आभा लिए,प्रेम की लाई परिवेश !!
अधर काँपने लगे, ठिठकने लगे शब्द मेरे !
पलकें कैसे झपके भला,सम्मुख जो प्रेयसी और प्रीत घेरे !!
वरूण से भीगी वरूणा लगती,चंचल चित्त चकोरी चमकी !
आवेश भला कैसे टीकता,प्रत्यक्ष जो कामिनी आ दमकी !!
देख स्थिति पवन झूम उठा, बिखरने लगी है जो काली लटें !
मैं थामने लगा ह्रदय अपना,प्रेम समर में डटे !!
अनंत गहराई है , इस पल इस क्षण में !
मेरी प्रेयसी की मादकता फैली,देखो कण-कण में !!

*रचनाकार:असकरन दास जोगी*
मो.नं. : 9340031332
www.antaskegoth.blogspot.com

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