प्रेम का पद्मासन

*प्रेम का पद्मासन*

प्रणय प्रेम
की खोज में
साध रहा हूँ
स्वाँसों को
क्या यह साध्य है ?
वाणी की मधुरता में
आचरण की संहिता में
जीवन की सादगी
नेत्र में बैठी
दर्शन की काया से
अभिभूत हूँ
क्या यह आकर्षण है ?
चित्त की चंचलता
चहक रही है
धरा अम्बर तक
घूम रही है
अपनी अभिलाषा
चाहे मुझसे
क्या यह सहज है ?
नेत्र बंद करके
बैठा हूँ
मन एकाग्र हो
चाहता हूँ
कण-कण में
क्षण-क्षण का
अवलोकन है
क्या यह ध्यान है ?
त्रिकुटी के केन्द्र से
चन्द्र सूर्य के प्रतिमान
प्रेयसी की वैभवशाली
प्रेम का प्रकाश
आलोकित करती अंत्तर को
क्या यह योग है ?
एकांत है
शांत्ति ही शांत्ति
अधरों में
नाम उच्चाहरण
ह्रदय की
गति मध्यम
श्रवण में चपलता
भावों में गहराई
सानिध्यता का बोध
क्या यह प्रेम है ?
या प्रेम का पद्मासन !

*रचनाकार:असकरन दास जेगी*
मो.नं. 9340031332
www.antaskegoth.blogspot.com

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