कुछ नया नहीं

कुछ नया नहीं

कुछ
नया नहीं
लिखता हूँ मैं
जो दिखता है
वही लिखता हूँ मैं
कभी
शोषण का
"श"
लिख लेता हूँ
कभी
प्रतिकार का
"प"
लिख लेता हूँ
जो
आग की तरह
फैली है
वह
हर बात
लिख लेता हूँ मैं
सुनो...
केवल
क्रांति नहीं
मिलन और विरह
को लेकर
कुछ
प्रेम पर भी
लिख लेता हूँ
अरे यह भी तो है
बढ़ती महंगाई
गिरता रूपया
मंडी में
सड़ते धान
फाँसी में
लटकते किसान
जो बोल नहीं पाते
उन गूँगों की
जुबान लिख लेता हूँ
विकास विकास
की राग सुनते
पके हुए
कानों का
दर्द भी लिख लेता हूँ मैं
मुझे
कुछ लोग
बोल रहे थे
गाय की महिमा
गोबर का महत्व
आरक्षण
वर्ग संघर्ष
पूँजीवाद
भष्ट्राचार
बलात्कार
और
ए.वी.एम.
पर भी लिखो
मैने कहा
बोल तो
सहीं रहे हो
पर मेरे
लिखने से
आप
आंदोलन पर भी
तो दिखो
पर्यावरण असंतुलन
छद्म देश भक्ति
धर्म का पाखण्ड
जर्जर अर्थ व्यवस्था
व्यथित सेना
इन पर भी
कभी-कभी
भाषण का
"भ" लिख
लेता हूँ
पता नहीं
लोग इसे
जुमला
समझ बैठते हैं
शिक्षा व्यवस्था
पे व्यंग्य
स्वास्थ्य व्यवस्था पर तंज
बेरोजगारी पर अफ़सोस
और
व्यवसाय का व्यय
इन्हें भी
नहीं छोड़ता
सब
देखते-देखते
आक्रोशित भी
हो जाता हूँ
समरसता
की गली में
असहिंष्णुता
बैठी है
रोते-रोते
मानवता
खुद को कोसता
मैने तो
पहले ही कहा था
कुछ नया नहीं
लिखता हूँ मैं
जो दिखता है
वही लिखता हूँ मैं |

असकरन दास जोगी
9340031332
www.antaskegoth.blogspot.com

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