हम-दोनों-07

*#हम_दोनों-7*

जलेबी जैसी बात उसकी
हर रोज फँसा रहता हूँ
नयन के निशाने में
घड़ी-घड़ी गुदता हूँ
बात यहीं पर अटकी है
तब प्रिय जनों को खटकी है
क्या कहें हम दोनों
जीभ्या तालू में चटकी है
भावनाओं के लहरों में
कब तक खायें गोते
प्रेम की नाव दिल की दरिया में
हम जाग रहे हैं सोते-सोते
हर कोई यही कहता है
हो गए तुम दोनों अनुरागी
खूब दुआएँ देते हैं
जब मिलते हैं वियोगी
जो न कह पाता
इशारों में कहता हूँ
सुनो-सुनो सदाचारिणी
जितना डरता हूँ
उतना ही तुम पर मरता हूँ
तुम मेरा अवलंबन ले लो
मैं तुम्हारा अवलंबन ले लूँ
चलो तोड़ें झिझक हम दोनों
हम दोनों एक-दूजे को अवलंबन कर लें |

*#रचनाकार_असकरन_दास_जोगी*

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