सतनाम ही सतनाम हो

*#सतनाम_ही_सतनाम_हो*

धैर्य धरा सी हो
कम्पित हो अंतर क्रोड
खींचो-खींचो
मन के घोड़े को
ओ योगी...
बैठो अचल होकर

विकारों को त्याग
भृकुटी में मन को साध
धरो ध्यान...
सतनाम का

यह पथ कठिन से कठिन
और चल सको तो
सहज से भी सहज
सुनो साहेब...
अनहद की आवाज़

आसन से मंथन तक
हो जागृति
इंद्रियों से चक्रों तक
देखा है कभी ?
मन की छोर को...
जहाँ प्रकाश ही प्रकाश है

दिखावा कुछ भी नहीं
आवागमन श्वांसों का
जिसमें ही आलाप हो
प्रभात हो या शाम हो
करो साधना...
सतनाम ही सतनाम हो |

*#असकरन_दास_जोगी*

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