मेलूहा

*#मेलूहा*

संस्कारों की मिट्टी में दबी
प्राचीन सभ्यता लगती है
जब होगी खुदाई
देख लेना
बेशक़...
सिन्धुघाटी की हड़प्पा जैसी है

है....
मर्यादा वह
जम्बू द्वीप की
मर्यादित ही रहना
उसकी आँख में
गहरा स्नानागार है
बचाओगे कैसे...
खुद को डूबने से

लोथल,बणावली
कालीबंगा,मोहनजोदड़ो
सब समेटे हुए बैठी है
कमजोर न समझना...
कांसे से भी मजबूत है

शहद जैसी मीठी वाणी
लिपि भावचित्रात्मक
वह जब लिखती है
दाईं से बाईं ओर
प्रकृति चक्र के साथ
यादों की बैलगाड़ी
दौंड़ लगाती है
तब....
देखते ही देखते
मन में मनकों की खनक
गूँज उठती है

पंचतत्व की नक्काशीदार ईंटों से निर्मित
नसें नर्तकी सी नाचती है
उसके दाँत
उन प्राचीन
मुहरों से कम नहीं
जिसकी रौनक को
हृदय के बंदरगाह में बैठकर
निहारना...
द्रविड़ों से सीखें
और सुनो...
अंतर के विशाल अन्नागार में
तब ही उतरोगे |

*#असकरन_दास_जोगी*

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