सुनो वक्त!
*#सुनो... वक्त !*
क्यों बदल रहे हो वक्त
अपना रंग
गिरगिट की तरह
कभी हम पर स्नेह था
बातें कराने के लिए
फ़ुरसत अपने-आप आ जाती थी
अब वक्त पर भी
दबाव है
मज़बूरियों का
बड़ी मुश्किल से
पुकार पाती है हमें
वक्त को धन्यवाद देता हूँ
आपने ही तो
मिलाया हमें
आपके दामन में है
कभी ख़ुशी कभी ग़म
वक्त से बहुत कुछ सिखते हैं हम
सुनो...वक्त !
एक विनती है
आप जैसे भी चलो
किन्तु...
हमारे पक्ष से न डिगो |
*#असकरन_दास_जोगी*
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