क्षणिकायें

" प्रयत्नों का पंख लगा लो
उड़ो जहाँ तक उड़ना है
इच्छाओं का आसमान अनंत
धीरज की धरती में ही
संतुष्टि का घरौंदा बनना है "

" उसने मोहब्बत की चिंगारी
यूँ फेंका
कि अगरबत्ती जैसा अपना हाल है
हम जल भी रहे हैं और खुशबू बांट भी रहे हैं "

" इस काश में ही तो आस है
जो समय को ताश की तरह फेंट रहा है
सुनों ज़िद का जोकर न बनों
वह खास है
जरूरी नहीं कि वह तुम्हारे पास हो "

" उसके गले में जो मुगलिया मुहर है
उसमें मेरी मोहब्बत का म्यान है
किसी से कुछ न कहना दोस्तों
इस बात से
उसके घर वाले भी अनजान हैं "

" हर बार उमंगों,तरानों,इरादों और ख़्वाबों से भर जाता हूँ
उसकी छवि में नबी दिखता है मुझे
मैं भरकर भी खालिस्थान हो जाता हूँ "

" या तो मुझसे दूर जाओ
या फिर मुझसे प्यार करो
ज़रा सुनो तो ज़ालिम
यूँ न दबे-दबे एहसासों से
मुझ पर वार करो "

" मैं घींस रहा था
आस के पत्थर से
भावनाओं के जल में
मन के मलयागिरि से लाया हुआ
चाहत का चंदन
तभी किसी ने कहा
आपके प्रेम का
हमारे हृदय में
अभिनंदन है अभिनंदन "

*#असकरन_दास_जोगी*

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