एक इंद्राणी आई थी
*#एक_इंद्राणी_आई_थी*
समझा लो
इन आँखों को
किसी से नज़र न मिलाये
कह दो मन से
किसी के मीठे बोल में
कभी न फसे
दिल को
बंदिशों के पत्थरों से दबा दो
धड़के न यूँ ही
अपने एहसासों को
दफ़न कर दो
जगे न किसी के लिए
कोई अप्सरा भी
आकर पूछे
प्रेम करोगे ?
तब कहना
माफ करना
एक इंद्राणी आई थी
छल कर गई
दिल पत्थर का हो गया है |
*#असकरन_दास_जोगी*
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