पावन प्रेम के लिये

*#पावन_प्रेम_के_लिये*

मैं मृत हो चूका था
उसने मुझे...
जीवित किया
वह प्रेम पात में पड़ी
ओस की बूँद
मन मंथन से आई
सुधा है

अलौकिकता कुछ नहीं
सब कुछ लौकिक है
प्रत्येक कल्पना में साध्य
कल्पना से परे
कुछ भी नहीं है
हाँ है वह साधारण
परंतु सुन्दर है

असमंजस में रहती है
परख नहीं पाती
जरा भोली है
दुनिया को
समझ नहीं पाती
किन्तु अनुभव आ रहे हैं
समय स्वयं उसे
समझा रहे हैं

जो मौन,अचल
विरक्त हो
वैराग्य में आशक्त हो
उसमें भी
वह भर सकती है प्राण
पाषाणों में भी
पावन प्रेम के लिये

*#असकरन_दास_जोगी*

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