आस पास

*#आस_पास*

आकाश,हवा
मिट्टी,आग
और पानी बनकर
तुम्हें महसूस होता हूँ
क्या मैं भी
तुम्हारे आस पास रहता हूँ ?

मेरे आस पास
रहती हो
कितना अच्छा लगता है
मुझे भी यह नही पता ?
लेकिन...
तुम मेरी परछाई हो
ऐसा लगता है

कुछ छिपा नही पाती हो
हर बात कह जाती हो
हो तुम पारदर्शी परदा
देखो मेरी नज़र से
सात परतों में भी
साफ-साफ नज़र आती हो

तुम जो खिंचती हो
उन्हीं रेखाओं पर
खड़े होते हैं लोग
भला कैसे पार कर सकते हैं
कटने वाले तो कट जाते हैं
मगर मर्यादा में
रहते हैं लोग

कोई सिखना चाहें
तो सिख सकते हैं
तुमसे विश्वास जगाना
सुनों...
तुम्हें आता है
सम्बन्धों को
प्रेम में बांधना

*#असकरन_दास_जोगी*

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