गुलाम आशिक़

*#गुलाम_आशिक़*

बंदूक की ट्रिगर जैसी
पलकें और भवों को
तानकर खड़ी है
देखने में बिल्कुल...
जरनल डायर लगती है

मैं डरा हूँ,सहमा हूँ
न जाने कब
वह आँखों से
नज़रों की गोलियाँ
धड़ाधड़ चलाकर
मेरे सीने और मेरे दिल को
छलनी-छलनी कर
शहीदी का तमगा
मेरे नाम कर दे

सच कहूँ,मैं भागने लगा
लेकिन भाग कर
मैं जाता कहाँ
मोहब्बत के इस बाग में
आकर्षण का एक कुआँ
खुदा हुआ है
जिसमें भावनाओं का नीर
उछालें मार रही है
किन्तु इस कुएँ में कूदना
मुझे भाया नहीं
फिर सीना तानकर
मैं उसकी ओर लौटा

मैं तत्पर तैयार था
इस बार
उसके मस्तिष्क के तोप ने
मुखार बिंद की नली से
विचारों के गोले छोड़े
पता है...?
मेरे तो परखच्चे उड़ गये

सुनो...और जान लो
मेरे अंदर के
एक निडर विरक्त को
सम्मान-जनक शहीदी प्राप्त हुई
तब जाकर
गुलाम आशिक़ का जन्म हुआ
और कहता है
इस गुलामी को मैं
ज़िन्दगी भर कर सकता हूँ  |

*#असकरन_दास_जोगी*

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