*#हमारा_नंगापन*


बहुतों के सामने
हमें नंगा होते
देखा जा सकता है
चाहे वह व्यवहार से हो
या विचार से
किस मिट्टी के बने हुए हैं
हम पुरुष ?

हमारा नज़रिया और नियत
कब डोल जाये
खुद ही पता नही रहता
हम अधिकतर मर्द
ऐसे ही होते हैं
जो किसी महिला के
पिछवाड़े से लेकर
सीना तक
कब ताक जायें
कोई रोक ही नहीं सकता

किन्तु यह भी सत्य है
हर कोई ऐसा नहीं होता
कुछ तो होते ही हैं
जो नारी सम्मान को
मानवता के साथ महत्व देते हैं
तब ही तो
इस संसार को
ऐसे पुरुषों की ही आवश्यकता है

एक पुरुष
जो दम्भी शोषक और शासक है
उसके लिए बहुत आसान है
एक स्त्री को नंगी
कहना या करना
लेकिन यह आँच
जब खुद पर आती है
तब वह अपने नंगेपन को
छिपाते हुए फिरता है

हम पुरुषों को
अपने नंगेपन को पहचानना चाहिए
हम नंगे तब होते हैं
जब किसी लड़की से
द्विअर्थी बाते करते हैं
उन्हें वासना भरी नज़रों से निहारते हैं
वे प्रत्येक व्यवहार और विचार
हमें नंगा करते हैं
जो एक स्त्री और पुरुष के बीच
मर्यादा को लांघती है |

*#असकरन_दास_जोगी*

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