माटी कस मम्हाथे

माटी कस मम्हाथे-छत्तीसगढ़ी गीत

घड़ी-घड़ी बरसथे सुरता के बादर
वो माटी कस मम्हाथे मोर भीतर...2

ददरिया बनाके गावँव वोला,महानदी कस लहरा लेवँव |
बैसुरहा दीवाना सब कहिथैं,मैं मया के बर सबला देवँव ||
कइसे बाँच पाही भिथिया भला,जब परही ओरवाती के झीपर...
घड़ी-घड़ी बरसथे सुरता के बादर,वो माटी कस मम्हाथे मोर भीतर...2

न अदना बदेवँ न बदना,बिन मांगे हिरौंदी मिलगे |
ए उजरत अँगना बारी म,मया के फूल मनमाने फूलगे ||
जब-जब आही घेख्खर पतझर,उहू करही मोर फिकर...
घड़ी-घड़ी बरसथे सुरता के बादर,वो माटी कस मम्हाथे मोर भीतर...2

जेकर हंसा ले मोर हंसा जुड़गे,अउ मन के डोर बंधागै |
रहि लेवय वो कतको दूरिहा,दूरिहा कस नइ लागै ||
परजै वोकर पाँव तरी भूलन,फेर करही मोर जिकर....
घड़ी-घड़ी बरसथे सुरता के बादर,वो माटी कस मम्हाथे
मोर भीतर...2

*#असकरन_दास_जोगी*

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