तब हम खेल पाते होली

*#तब_हम_खेल_पाते_होली*



हमारे चेहरे का रंग तो
तभी उड़ गया था
जब आम और ख़ास लोगों के बीच में
दीवार खड़ी की गई थी
अब इन अबीरों को लगाने से
चेहरे में रंगत थोड़ी न आएगा

हमारे सपनों के रंग
इंद्रधनुष के सात रंगों से भी ज्यादा थे
किन्तु सबको
रक्तरंजित कर
सिर्फ लाल कर दिया गया
उन बंधुत्व के रंगों को
हम ढूँढ़ रहे हैं
दिलवालों की नगरी दिल्ली में

हमारी विद्वता,वैज्ञानिकता और मेहनत का रंग
हमारे और हमारे देश के लिए
कोई काम का नही है
जब हम विदेशों से मूर्ति लाते हैं
विदेशों से विमान लाते हैं
क्यों भला...
हम हर चीज़ खरीदते हैं ?
क्या हमारे सृजन का रंग
बेरंग है ?

हमारे खुशियों का रंग
यूँ ही गायब नहीं हुआ है
उसे गायब किया गया है
ठीक वैसे ही
जैसे यश बैंक से
रंगीन नोटों का घोटाला किया गया है
और आज हमें इस बैंक की तरह
हर रंग से
दीवालिया घोषित किया जा रहा है
पता है...?
इन रंगबाज़ों ने रंगरेलियाँ मनाने के लिए
गरीबों से उनकी रंगीनियाँ छिन ली

हमारी होली तभी सार्थक होती
जब हम आम और ख़ास लोगों के बीच दीवार न उठाते
दंगे न करते
हमारे सृजन का रंग बेरंग न होता
अपनी रंगरेलियों के लिए घोटाले न करते
नारियों का सम्मान होता इस देश में
तब हम खेल पाते
पलाश और सेमल के रंगों को निचोड़कर
सरसो,चने,अरहर,मसूर और गेहूँ की बालियों के साथ होली |

*#असकरन_दास_जोगी*

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