अपनी ख़्वाहिशों की मीनारें
जिसे चाहता हूँ
मैं टूट कर चाहता हूँ
पता है..?
मुझे फिक्र नही बिखर जाने की
सुनो...
ज़िक्र वो करे या न करे
मैं तो आशिक़ ठहरा
उसकी नफासत की
देखेंगी उनकी निगाहें
मुक़म्मल होंगी एक दिन
बड़े अदब से
अपनी ख़्वाहिशों की मीनारें
जिसे चाहता हूँ
मैं टूट कर चाहता हूँ
पता है..?
मुझे फिक्र नही बिखर जाने की
सुनो...
ज़िक्र वो करे या न करे
मैं तो आशिक़ ठहरा
उसकी नफासत की
देखेंगी उनकी निगाहें
मुक़म्मल होंगी एक दिन
बड़े अदब से
अपनी ख़्वाहिशों की मीनारें
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