सुनो....

 #सुनो...


आँखों से बातें करना 

अच्छा लगा,

अच्छा लगा 

उनसे दूर से ही मुलाकात करके 


अपना परिचय 

नमस्ते से समझते तक 

अन्यथा...

यहाँ तो लोगों का 

खुद से ही परिचय कहाँ


उनकी सादगी 

शरद की पूर्णिमा जैसी

और हम ठहरे 

अमावस की काली रात


मोती से लगते हैं 

होंठों पर चमकते दांत 

सच कहूँ 

वह अपने जैसी एक ही है


काले कुंतल 

मेघों से भी घनेरे 

पता है...?

उनके आस पास होने पर 

वृक्ष की छाँव का एहसास होता है


मेरे आंगन में 

यही छाँव चाहिए 

सुनो...

इस दौड़ती भागती ज़िन्दगी को 

आराम तो मिले |


#असकरन_दास_जोगी

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