मैं शून्य हूँ

 #मैं_शून्य_हूँ


कहने को क्या कहूँ 

बेहद चाहता हूँ उसे 

अपने हद में रहकर 


अपनों के पास तो 

हमेशा रहती है 

वह है भी और नही भी 

मेरे पास 


हम मिलेंगे यह विश्वास है 

परन्तु परिस्थिति 

न जाने क्या गुल खिलाये


मैं महसूस करता हूँ 

वह हवा की तरह हिलोरती है मुझे 

पानी की तरह भिगाती है 

मिट्टी की तरह महकती है मुझमें 

तपती रहती है आग की तरह 

और छायी रहती है मन में 

अनंत आकाश की तरह

वह प्रकृति है 

और

 मैं शून्य हूँ |


#असकरन_दास_जोगी

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