बता यह है कौन ?
#बता_यह_है_कौन_? उनसे मुलाकात नहीं कोई बात नहीं फिर भी उनसे मुलाकात हुआ सुनो... उनके साथ एक महाशय प्रश्न लिए बैठा था बता यह है कौन...? कमरा चिखने लगा सोफे काटने लगे पंखे के गले में खराश होने लगा वाणी के वीर जब यह बोले चांद भी बादल में छिपने लगा वह कहती क्या हम अनजाने तो नहीं मेरे लिखे एक-एक शब्द को पढ़ती और समझाती बस मित्र हैं... यही कहती बैठा था मैं भी वहीं मैने भी साथ दिया उनकी आँखों को और अपने अंदर को झाँक लिया यही कहा... मैं तो सिर्फ लिखता हूँ कवि हूँ या प्रेमी पता नहीं लेकिन मित्र जरूर हूँ जिन पन्नों को वह पलट रही थी वह भी अब ख़त्म हुआ समझाने का वह वक्त विशिष्ट पता है... मैने दोनों को शुभकामनाएँ दी रात हो चली थी मैने वहाँ से जाने का नाम लिया घबराई थी उनके बीच में सन्नाटा था महाशय कीआँखों में शंका का शूल कमरे में वे सिर्फ दोनों क्षण-क्षण जैसे सर्प वह कहने लगी जाओ नहीं... कुछ देर में तुम आना मैं अकेली...